How truthful we are to our goals ? Do we exactly decide and tell what is our aim? A dilemma between what we want to achieve and what we put on display to the world is always present in front of a person.
A small Indian folktale, showing the importance of being truthful to our aims and goals…
लघुकथा
“लक्ष्य अवश्य तय कर लें।”
एक बार एक व्यक्ति गहरे जंगल में तपस्या करने गया। दिन रात तपस्या करने लगा। उसने दिनभर हवन करने के लिए हवन सामग्री मंगाई और हवन करने लगा। मन्त्रों से देवी को प्रसन्न करने की भरसक कोशिश करने लगा। जंगल में राख के ढेर लगते चले गए परंतु देवी प्रकट नहीं हुई। पर उस व्यक्ति ने हवं बंद नहीं किया।

एक दिन उज्जैन के महाराज विजरामदित्य अपने लाव लश्कर के साथ उस जंगल से होकर जा रहे थे कि अचानक उनकी नजर एक शिकार पर पड़ी। उन्होंने शिकार का पीछा किया और महाराज विक्रमादित्य रास्ता भटक गए। वे उस तपस्वी की ओर निकल गए, उनके संगी साथी बिछुड़ गए। कुछ दूरी पर उन्होंने आश्चर्यजनक दृश्य देखा कि जग जगह राख के ढेर देखे। वो सोचने लगे कि इतने गहरे जंगल में इतनी सारी राख कहाँ से आयी। राख के ढेर क्यों लगे हैं।
महाराज आगे बढे तो देखा कि एक अतिवृद्ध व्यक्ति संत के वेश में हवन कर रहा है, लगातार मन्त्रों का उच्चारण करता जा रहा है। उन्होंने जाकर प्रणाम किया और पूछा “संत महाराज, इस घोर जंगल में राख कहाँ से आई है।” तपस्वी ने कहा, “राजन, मैं मेरे यौवनकाल से अब तक बहुत वर्षों से देवी भगवती की आराधना कर रहा हूँ।” विक्रमादित्य राजा ने पूछा, “क्षमा करें महाराज, इतने लंबे समय तक देवी की आराधना और हवन का लक्ष्य और ध्येय क्या हो सकता है?” इस पर उस संत ने उत्तर दिया “मैं ये हवन देवी के दर्शन के लिए कर रहा हूँ मगर देवी माँ ने अभी तक नहीं दिए हैं। पता नहीं क्या भूल हो रही है।”
राजा को यह बात सुनकर आश्चर्य हुआ कि इन संत महाराज को इतनी लंबी तपस्या के बाद भी देवी माँ के दर्शन नहीं हुए, ऐसा क्यों?” महाराज ने बहुत सोचा मगर कुछ समझ में नहीं आया। महाराज विक्रमादित्य न्यायप्रिय राजा थे और ईश्वर में अटूट विश्वास रखते थे। उन्होंने संकल्प किया कि संत महाराज को देवी माँ के दर्शन तो होने ही चाहिए। राजा ने म्यान में से तलवार निकाली और बोले “माँ ये जीवन आपका दिया हुआ है, आपके किसी बच्चे की इच्छा पर उसे दर्शन न हो तो जीवन का क्या लाभ?”

तलवार को घुमाकर अपनी गर्दन पर रख दिया और काटने को तैयार हुए कि देवी माँ प्रकट हो गई। बोली, “विक्रमादित्य तुम सत्यवादी, धर्मनिष्ठ, प्रजापालक, और गुणी हो, फिर भी आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध कर रहे हो।” राजा ने कहा माँ ये संत इतने लंबे समय से आपकी आराधना कर रहा है, सारा जीवन तपस्या लीन रहा, परंतु आपने दर्शन नहीं दिए जबकि मेरे प्राण बचाने के लिए प्रकट हो गई। इसका क्या कारण है?”
देवी माँ ने राजा को बताया “ये संत दोगला है, झूठ बोल रहा है। इसका ध्येय मेरा दर्शन कर आ नहीं है,बल्कि मुझसे पारस पत्थर पाना चाहता है ताकि मन चाहे जीतना सोना बनाये। इसका ध्येय मेरा दर्शन करना होता तो मैं कब की ही प्रकट हो गई होती।”
दोस्तो, कमोवेश यही हम सबकी कहानी है, हम भी अपनी इच्छाओं को छिपाकर दूसरों को कुछ का कुछ कहते हैं। कहते कुछ हैं और ध्येय कुछ होता है। लक्ष्य से भटक जाते है। इसलिये हमारा मन और आत्मा से लक्ष्य निर्धारण होना चाहिये।

Story credit:
Mr. Dalchand
A Storyteller by heart
Storytelling has its own charm in learning and teaching. Native stories make a strong impact, with ease of understanding as they are deep rooted in culture and community. Hindi being my mother tongue never left its space in my heart. I strongly believe that in early childhood teaching in mother tongue is definitely the easiest way to reach to a child’s heart.
Indian folklore has been passed through generations over the centuries, with the words of wisdom which benefit young and old equally. I plan to share these short stories aka folk tales every once in a while to my audience, use them as a warm up activity, lunch break filler, going home time activity or simply read to your own children. Stories have their own magic!
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