Storytelling has its own charm in learning and teaching. Native stories make a strong impact, with ease of understanding as they are deep rooted in culture and community. Hindi being my mother tongue never left its space in my heart. I strongly believe that in early childhood teaching in mother tongue is definitely the easiest way to reach to a child’s heart.
Indian folklore has been passed through generations over the centuries, with the words of wisdom which benefit young and old equally. I plan to share these short stories aka folk tales every once in a while to my audience, use them as a warm up activity, lunch break filler, going home time activity or simply read to your own children.
Stories have their own magic.
लघु कथा
“बेकदारांदी दोस्ती, तू क्यों लाई हँस।”

एक बार एक कौवा उड़ते उड़ते एक झील के किनारे आया जहाँ उसने एक हँस को उस झील के निर्मल जल में मोती चुगते हुए देखा और उससे दोस्ती करने की इच्छा जताई। हँस का हृदय निर्मल होता है, उसने तुरंत उस कौवे से दोस्ती करने की हाँ कर दी। कुछ दिन बीते, दोनों रोजाना घंटों खूब बातें करते करते और हँसते-खेलते अच्छे दिन गुजारने लगे। कौवे को अब अपने घर की याद सताने लगी और उसने अपने दोस्त हँस को कहा ‘मित्र हँस अब मैं अपने देश जाना चाहता हूँ। कभी तू भी मेरे देश आना।‘ इस पर हँस ने कौवे का निमंत्रण स्वीकार कर लिया और उसके देश आने की हाँ भर दी।

दिन-पर-दिन बीतने लगे। कुछ दिन बाद हँस अपने मित्र कौवे से मिलने के लिए उड़ते-उड़ते उस देश चला गया जहाँ कौवा रहता था। कौवे ने अपने देश आए हँस को तुरंत पहचान लिया। उसे देख कर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। उसके मन में यह दुराभाव था कि वह हँस का मांस खाए। उसने योजना बनाई कि अब ये मैं हँस मेरे देश में है और मुझे अपना विश्वासपात्र दोस्त मानता है इसलिए मैं इसका मांस खा सकता हूँ। फिर उसने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर हँस को मार डाला और सभी कौव मिलकर उसे नोच-नोच कर खा गए। बेचारा भोलाभाला निर्मल हृदय का हँस गलत जगह मित्रता करके अपने प्राण गवां बैठा।
समय के अंतराल में जब हँस वापस नहीं आया तो झील के किनारे रहने वाली हँसिनी ने सोचा चलो मैं अपने हँस को ढूंढ कर लाती हूँ। व्यथित मन से उड़ती-उड़ती वो भी पूछते हुए उसी कौव देश चली गई जो उसके हॅंस का दोस्त था। उसने वहॉं जाकर देखा कि उसके हँस के पंख और हड्डियां जगह-जगह बिखरे पड़े थे। हंसिनी ये सब देखकर टूट गई और अत्यंत दु:खी हुई और उसके मुख से बरबस निकल गया :
‘’बेकदरांदी दोस्ती तू क्यों लाई हँस, गलियां गलियां तेरी हड्डियां रूड़दियाँ, चप्पे-चप्पे पंख’’
अर्थात्
ओ मेरे हँस, तूने बेकदर कौवे से दोस्ती क्यों की। तेरे भोले और निर्मल स्वभाव के कारण तूने दोस्त की मंशा नहीं पहचानी और इस कारण आज गली-गली में तेरी हड्डियां और पंख बिखरे पड़े हैं। सच है बेकदर इंसान से दोस्ती नहीं करनी चाहिए। अपने समान विचार और संस्कार वालों से ही दोस्ती अच्छी होती है, नहीं तो उस भोले, सीधे-सादे हँस की तरह जीवन की हानि भी हो सकती है। कहा भी है – ‘सिंगल पशु से दस कदम और कुत्ते से आठ। दुर्जन की संगत बुरी, कदम बचे एक सौ साठ।‘ यानि सींग वाले पशु से दस कदम, कुत्ते से आठ कदम और दुर्जन व्यक्ति से एक सौ साठ कदम दूर रहना चाहिए। उसकी संगति नहीं करनी चाहिए।

Story Credits:

Mr. Dalchand
A Storyteller by heart
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Great story, very subtle and inspiring
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Thanks
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बहुत ही ज्ञान वर्धक लेख है
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What an interesting story
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Thanks..hope to see you visit often
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Good story
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Awesome story with a wonderful lesson, much needed in today’s world. Keep posting such inspiring and learning stories…..
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अनुकरणीय कथा 🙏वर्तमान संसार का दर्पण है।
राधे राधे
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Thanks sir for sharing this valuable message
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Shandar ji
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Good Story, fits in present world scenario.
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सर यही तो मुश्किल है दोस्त बनाने की उम्र में आदमी पहचानते नही और जब आदमी पहचान जाते हैं तो समय निकल चुका होता है।
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Good, It is very much relevant in today’s world .
probably this is one of the reasons parent guide his / her ward,’s associates
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